3751 मंझिल

नफरत प्रेम को खा गई तुम 

प्रेम से नफरत को खा जाओ ।

क्रोध शांति को खा गया तुम

शांति से कोध्र को खा जाओ ।

लोभ संतोष को खा गया तुम 

संतोष से लोभ को खा जाओ ।

स्वार्थ रिश्ते को खा गया, तुम 

नि:ष्काम कर्म से स्वार्थ को 

खा जाओ । 

मोह स्नेह को खा गया, तुम

प्रेम से मोह को खा जाओ ।

राग द्वेष, ईर्षा, ईन्सानयत 

को खा गई । तुम सदाचार से

राग द्वेष, ईर्षा को खा जाओ ।

भेरसेर लोगों कि सहेद खा गया

तुम भेरशेर नहि करके लोगों 

कि शहेद लौटा दो ।

बेईमानी प्रमाणिकता खा गई 

तुम प्रमाणिक बन के बेईमानी

को खा जाओ । 

बुराई अच्छाई को खा गई तुम

अच्छाई से बुराई को  खा जाओ ।

बुराई स्वर्ग को खा गई, तुम बुराई

को जडसे उखाड कर फेंक दो तुम

अच्छाई से नर्क कोशमीटा दो ।

जब तक आप खुद यह काम 

नहि करोगे तब तक कुछ नहि

बदलेगा । परिवर्तन संसार का

नियम है, हमे बदलना होगा ।

शुभ सकारात्मक बदलाव हि

आसान रास्ता है ईन्सानियत 

कि मंझिल पाने का ।

विनोद  आनंद  १२/०५/२०२४

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3717 बरबादी के कारण

युवा अवस्था मनुष्य जीवन का 

सब से महत्त्वपूर्ण पडाव होता है । 

जिस वक्त मनुष्य के पास ताकत, 

सामर्थ्य, हिंमत, जूनून होता है 

लेकिन होस नहि होता है ।

इसलिऐ लोगोंको युवा अवस्था 

का महत्त्व समझ कर सफलता  

के लिए अपने लक्ष्य पर ध्यान 

देकर पुरा प्रयास करना है । ईस 

में किगई गलती पूरे जीवन को

बरबाद कर देगी । जब हम जन्म

लेते है तब हम न अच्छे, न बूरे

होते है । लेकिन हमारे संस्कार,

माहोल, सोच और कर्म हि हमे

अच्छा या बुरा ईन्सान बनाता है ।

हम कभी अच्छी आदतें अपनाते है 

एसे बुरी आदते भी अपना लेते है ।

जो ईन्सान बुरी आदतों को छोड

के अच्छी आदतें अपनाता है वो 

हि अपना जीवन बहुत अच्छे से

जी शकते है । लेकिन कुछ लोग

बुरी आदतों के चक्रव्यूह से नहि

निकल पाते है और बुरी तरह से 

फस जाते है उस का जीवन नर्क

में बदल जाता है । जीवन को 

बरबाद होने से रोना है तो चार

चीज़ो का ध्यान रखो और उसे

दूरी बनाए रखो ।

१) आलस्य : मनुष्य को आलस्य

कि बीमारी जकड लेती है और वो

जीवन में सफल नहि हो शकता ।

आलसी मत बनो । सूरज उगने से

पहेले उठ जाओ और अपने लक्ष्य

के प्रति प्रतिबध्ध रह के काम करो ।

आलस्य एक नकारात्मक गुण है ।

 युवाओं में आलस का स्थान नहि

होना चाहिए बलकि अनुशासन के

साथ जीना चाहिए ।

२) नशा : नशा तो युवाओं के लिए 

अभिशाप है । जिस युवा को नशे 

कि लत लग जाती है वो जीवन में 

दुःख दर्द हि झेलते है । नशे से 

शारीरिक, मानसिक, आर्थिक 

नुकशान भुगतना पडता है और

जीवन बरबादीके रास्ते चलता है ।

जीवन नर्क कि भाँति परेशानी,

मुश्किलें, यातनाओं, बिमारीओं

से भर जाता है । दारू, तमाकू,

द्रग्स, वगैरह के नशे बचो ।

नशे में हम अपना जीवन बरबाद

करते है, परिवार को भी चैन से

जीने नहि देते, बोज बन जाते है ।

नशे के बार में सोचना हि मना है ।

३) कुसंग (गलत संग) : युवाओं 

को सब से ज्यादा, तुरंत प्रभाव 

गलत संगत से पडता है । जो 

नशा करता है, आलसी है और

कई बुरी आदतों का शहेनशाह 

है उसे दूर रहो । अच्छी आदतें 

अच्छी सोच और कर्म करे उस

का संग करो । सत्संग से संत 

बन शकते हो, कुसंग से दानव 

बन शकते । कुसंग नहि छोडोगे

मतलब बरबादी को निमंत्रण ।

सत्संग करना मतलब आबादी 

को निमंत्रण ।

४) जुए कि लत : जुए कि लत

ईन्सान को गरीब बना शकती 

है जुगार खेल कर अमीर नहि

बन शकते । जुए में हारों या

जितो जुए खेलतने कि ईच्छा

तृप्त नहि होती ओर बढती है,

बरबादी का कारण बनती है ।

चार बरबादी के कारणो से दूर

रहेगा वो ईन्सान स्वर्ग का सुख

पा शकता है वरना नर्क कि 

यातनें भूगतनी पडेगी । युवाओ

सावधान, चौकने और जागृत

होकर जोस के साथ होस में 

सोच समझ कर जीओ तो हि

कामीयाब होगे एक दिन ।

विनोद  आनंद  २०/०२/२०२४

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3708 शांत मन रखो

जीवन का सब से बडा गुण

मन को शांत रखो । मन को

शांत रखने से, ठंडा रखने से 

जीवन कि हर द्विवि

धा का और

हर परेशानी का हल मिलगा ।

आप जीवन आनंद से जीओगे

और जीवन स्वर्ग बन जाएगा ।

अपनी हर परिस्थिति पर आप 

का बस होगा । आप परिस्थिति 

के बस में नहि होंगे ।

मन को शांत रखना और शांति 

का मतलब है कि आप उसे जूडे

हुए हो, जो सनातन है, जिस का

कभी नास नहि हो शकता । 

आप बैचेन हो,अशांत हो उस का

मतलब है कि आप उसे जूडे है,

जो नासवंत है, सीमित है । 

जितना अदंरूनी मन से, आत्मा

से बहार कि तरफ, आत्मा से,

ईश्र्वर से, चेतना से जूडे रहोगे, 

खुद को शरीर नहि,आत्म के रूप 

में देखोगे उतना मन शांत रहेगा । 

जितना दुनिया, वस्तुओं, विषयो 

से, परिस्थितियों से जूडे रहोगो

उस को सब कुछ समझोगे तो

परेशान रहोगे, मन भ्रमित रहेगा

और बैचेन और अशांत रहेगा तो

जीवन नर्क बन जाएगा । 

जो ईन्सान जानता है कि जीवन कर्म

योग कि यात्रा है, किए कर्म को

भूगतना है, अच्छे कर्म करना है,

वो मुश्केलियों और परिस्थितियों  

से विचलित नहि होता वो शांत

शांत थमन से हल ढूंढता है खुस

रहेता है । जो खुद को शरीर 

समझता है वो निष्फलता से

और परिस्थितियों से विचलित 

हो जाता है और मन को शांत 

नहि रख पाता । अशांत मन हि

मुश्किलें, परेशानियों का जड है ।

और शांत मन हि मुश्किलें और 

परेशानियों का हल है ।

विनोद  आनंद   ३०/०१/२०२४

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3665 रिश्तें जीवन है

रिश्ते चदंन जैसे शीतल होते है 

और प्रेम कि खुशबू फैलाते है ।

रिश्ते चंदन जैसे रखने चाहिए

चाहे कितनी बार भी टूटे उस

में से प्रेम कि महेंक आनी है ।

कोई भी रिश्ता प्रेम के बीना 

टीक नहि शकता और कोई

प्रेम है तो उसे कोई तोड नहि 

शकता ।

रीश्ते परिवार कि बुनियाद है 

अगर वो मजबूत है तो जीवन

सफल, सार्थक और समृद्ध है ।

रिश्तों कि बुनियाद में प्रेम, स्नेह

सेवा, समर्पण, और कुरबानी 

होना आवश्यक है । परिवारमें 

रिश्तों कि हेमीयत समजो तो 

परिवारमें क्लेश, मन मुटाव 

रूढना, नाराज़गी वगेरे कि कोई

गुंजाइश हि नहि होती । रिश्तों 

के बीना जीवन जैसे साँस बीना

शरीर,परिवार का प्राण है रिश्ते ।

रिश्तोंमें प्रेम घोलते रहेना, स्वार्थ 

का जहर नहि । रिश्तों में सेवा 

समर्पण, कुराबानीका अमृत को

घोलते रहेना। अच्छे,मजबूत रिश्ते 

जीवन कि आन बान शान है ।

रिश्तोंके बीना जीवन बंजर है 

जिसमें न फसल उगती है न 

फल । कितनी भी बडी किंमत 

चुकानी पडे रिश्तो को जिंदा 

रखने के लिए तो वो कम हि 

होगी । पैसों को नहि रिश्तों 

को ज्यादा हेमीयत देना । धन 

दौलत,जायदाद कि लालच में 

रिश्तों कि होली मत जलाना 

नहि तो जीवन जल जाएगा ।

रिश्तों है तो जीवन स्वर्ग है 

वरना जीवन नर्क है ।

विनोद  आनंद   ०३/१२/२०२३

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