951 निराशा

निराशा मानवी का 

महान शत्रू और 

जानलीवा रोग ।

जिस मानवी में, उत्साह

आशा और आत्मविश्र्वास 

कि कमी हो तब निराशा

उसे घेर लेती है ।

निराशा एक नकारात्मक

द्रष्टि कोण उसे हारात्मक

द्रष्टि कोण से देखो ।

निराशा में आशा का दिप

जलाओ तो निराशा का

अंघेरा दूर हो जाएगा ।

निराशा को गले मत लगाओ

उसे मन में पनाह मत दो 

वरना वो जीवन में उदासी, 

अशांति और हताशा भर देगी

और जीवन में आत्महत्या कि

प्रेरणा देगी ईसलिए निराशा

को आसपास भटकने न दो ।

वरना वो छिन लेगी जीने का 

उत्साह और जिजिवीशा ।

सावधान जीवन कि हर

परिस्थिति में उत्साह, 

आशा और आत्मविश्र्वास 

बनाए रखना निराशा को

भगाने के लिए । निराशा 

भगाओ आशा जगाओ ।

निराशा मृत्यु, आशा जीवन

विनोद आनंद                               25/10/2017     फेंन्ड, फिलोसोफर,गाईड

864 निरीक्षण करो

हम कैसे जीते है ? 

जरा निरीक्षण करो, क्या 

हम विचार शून्य जीते है ? 

कुछ भी बोले या करो तो, 

पहले करो विचार कि

सही है, तो बोलो या करो ।

तो जीवन विचार शून्य नही है ।

क्या हम लक्ष्य हीन जीते है ? 

जीवन में क्या बनना है ? 

जीवन कैसे जीना है

पहेले से तय होना चाहीए

फिर जीवन जीना है ।

तो जीवन लक्ष्य हीन नही है ।

क्या हम रोते हुए 

दुखी होते जीते है ? 

कुछ भी मिले और

कुछ भी हो  वो हमारे

कर्मो का फल है ।

हमे हसी खुशी से

सहन करना है और

कुछ हकारात्मक सोच से 

अच्छा करना है तो 

भविष्य हो खुश खुशाल तो

जीवन रोते हुए, दु:खी न हो ।

हम कैसे जीते है ? 

खुद के निरीक्षण में  जीओ ।

विनोद आनंद                                01/08/2017    फेंन्ड, फिलोसोफर,गाईड